Saturday, 14 October 2017

भाग्यशाली योग :-


|| ॐ ||

भाग्यशाली योग :-
यदि नवम स्थान अधिपति नवम भाव में स्थित हो तो मनुष्य "भाग्यशाली" होता हैं, यदि नवम भाव में गुरु स्थित हो तथा नवमेश (नवम भाव अधिपति) केंद्र स्थान (१, ४, ७, १०) में हो तथा लग्नेश बलवान हो तो मनुष्य बहुत "भाग्यशाली" होता हैं |


राजप्रिय योग :-
यदि सूर्य परम उच्च (मेष राशि में १० अंश) पर हो तथा नवमेश लाभ स्थान में स्थित हो तो मनुष्य राजा का प्रिय होता हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

दीर्घायु योग :-


|| ॐ ||

दीर्घायु योग :-
लग्न कुंडली में अष्टमेश यदि केंद्र स्थान (१, ४, ७, १०) में स्थित हो तो जातक दीर्घायु (लम्बी उम्र) प्राप्त करता / करती हैं | लग्नेश तथा अष्टमेश दोनों बलवान हो तो जातक अवश्य दीर्घायु प्राप्त करता / करती हैं |


अल्पायु योग :-
लग्न कुंडली में अष्टमेश यदि बहुत से पाप ग्रहों के साथ स्थित हो तो जातक अल्पायु (कम उम्र) प्राप्त करता / करती हैं | यदी लग्नेश बलहीन हो तथा दुस्थान (६, ८, १२) में स्थित हो तो आयु की हानि करता हैं |

नोट :- जन्म पत्रिका से आयु निर्धारण हेतु अन्य वर्ग कुंडलियो में लग्नेश अष्टमेश की स्थिति तथा ग्रहों की स्थिति देखना आवश्यक हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

सच्चरित्र स्त्री योग :-


|| ॐ ||

सच्चरित्र स्त्री योग :-
यदि सप्तमेश उच्च राशि में स्थित हो या सप्तम भाव में शुभ ग्रह हो तथा लग्नेश बलवान होकर सप्तम में स्थित हो तो जातक की पत्नी सद्गुणों वाली होती हैं |

पत्नी सुख :-
यदि सप्तमेश स्वराशि या उच्च राशि में हो तो जातक को स्त्री सुख प्राप्त होता हैं | सप्तमेश बलवान हो और शुभ ग्रहों से युक्त हो तब मनुष्य पत्नी सुख से संपन्न, समर्थ, धनी तथा सम्मानित होता हैं |

रोगग्रस्त स्त्री :-
यदि सप्तमेश नीच राशि में या शत्रु राशि में हो अथवा सप्तम भाव निर्बल हो तो जातक की पत्नी रोग ग्रस्त याने किसी रोग से पिडित होती हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

व्रण / चोट :-


|| ॐ ||

व्रण / चोट :-
यदि पाप ग्रह षष्ठेश (षष्ठ भाव का अधिपति) हो तथा लग्न, षष्ठ, अष्टम भाव में स्थित हो तथा जो राशि छठे भाव में हो उस राशी से जिस अंग का विचार होता हैं उस शारीरिक अंग में व्रण / घाव / चोट लगती / होती हैं |

राशियों का अंगविभाग:-
मेष = सिर, वृषभ = मुख, मिथुन = गला, कर्क = छाती,
सिंह = पेट, कन्या = बस्ती प्रदेश, तुला = कटी / कमर, वृश्चिक = गुप्तांग,
धनु = जांघे, मकर = घुटने, कुम्भ = पिंडलिया, मीन = पैर |

डर / भय :-
यदि षष्ठेश प्रतिकूल स्थिति (नीच राशि, शत्रु राशी, पाप ग्रहों से पिडित) में हो तथा चन्द्र निर्बली हो तो जातक भयग्रस्त होता हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

संतान सुख :-


|| ॐ ||
संतान सुख :-
लग्नेश पंचम में हो अथवा पंचमेश पंचम में हो अथवा पंचमेश केंद्र या त्रिकोण (१, ४, ५, ७, ९, १०) में हो तो संतान (संतान प्राप्ती) सुख होता हैं |


संतान चिंता :-
यदि पंचमेश प्रतिकूल स्थिति (नीच राशि, शत्रु राशी, पाप ग्रहों से पिडित) हो तथा त्रिक भावो (६,८,१२) में स्थित हो तो संतान चिंता सताती हैं |

पुत्र योग :-
यदि पंचम भाव में गुरु हो तथा बलवान पुरुष ग्रह (सूर्य / मंगल) से देखे जाते हो और पंचमेश भी बलवान हो तो जातक को पुत्र प्राप्त होता हैं |

कन्या योग :-
यदि पंचम भाव में चन्द्र हो अथवा पंचमेश चन्द्रमाँ के साथ हो तथा पंचम स्थान स्त्री ग्रह (शुक्र) से देखा जाता हो तो जातक को कन्या संतति प्राप्त होती हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

गृह सुख :-


|| ॐ ||

गृह सुख :-
यदि चतुर्थेश चतुर्थ भाव में हो अथवा लग्नेश चतुर्थ में हो अथवा लग्नेश चतुर्थेश परिवर्तन योग (परिवर्तन योग = एक भाव का अधिपति दुसरे में और दुसरे का पहले में) हो एवं शुभ ग्रह की उन पर दृष्टी हो तो घर, आवास का पूर्ण सुख प्राप्त होता हैं | यदि चतुर्थेश स्वराशि, स्वनवांश या उच्च राशि में हो तो जातक को भूमि, घर, संगीत आदि का सुख प्राप्त होता हैं | यदि चतुर्थेश केंद्र या त्रिकोण (१, ४, ५, ७, ९, १०) में हो एवं शुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो तो मनुष्य को आरामदायक तथा सुख सुविधा पूर्ण घर की प्राप्ति होती हैं |


गृह चिंता ;-
यदि चतुर्थेश प्रतिकूल स्थिति (नीच राशि, शत्रु राशी, पाप ग्रहों से पिडित) हो तथा त्रिक भावो (६,८,१२) में स्थित हो तो जातक को खुद के घर की चिंता सताती हैं अर्थात खुद का घर प्राप्त होने में कष्ट तथा दुःख प्राप्त होता हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

परिश्रम से सफलता :-

|| ॐ ||

परिश्रम से सफलता :-
यदि तृतीय भाव शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो अथवा तृतीयेश (तृतीय भाव अधिपति) तृतीय में हो अथवा तृतीयेश व मंगल (नैसर्गिक भ्रातृ कारक) केंद्र अथवा त्रिकोण (१, ४, ५, ७, ९, १०) स्थान में हो तो मनुष्य पराक्रमी होता हैं तथा परिश्रम से सफलता प्राप्त करता हैं |



भ्रातृसौख्य विचार :-
यदि मंगल व तृतीयेश तृतीय स्थान को देखते हो अथवा तृतीयेश तृतीय में हो व तृतीय स्थान पर शुभ ग्रहों की दृष्टी हो तो भ्रातृसौख्य (भाई बहन का सुख) प्राप्त होता हैं |

नोट:- भ्रातृ सुख योग का विचार करते समय द्रेष्काण कुंडली तथा योगकारक ग्रह का विचार करना आवश्यक हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

Saturday, 16 September 2017

धन व्यय विचार :-




|| ॐ ||

धर्म कार्य हेतु व्यय :-
यदि व्ययेश (द्वादश भाव अधिपती) शुभ ग्रहो के साथ स्थित हो अथवा व्ययेश पर शुभ ग्रहो की दृष्टी हो तो जातक का धन धार्मिक कार्य (औरों की मदत करना, सामाजिक विकास हेतु, दुसरों के हीत) मे खर्च होता हैं |

अधर्म हेतु व्यय :-
यदि व्ययेश (द्वादश भाव अधिपती) पाप ग्रहो के साथ स्थित हो अथवा व्ययेश पर पाप ग्रहो की दृष्टी हो तो जातक का धन अधार्मिक कार्य (औरों को सताना, सामाज के अहीत) मे खर्च होता हैं |

नोट :- धर्म का अर्थ हैं दुसरों को खुश रखना, अधर्म का अर्थ हैं दुसरों को हानि पहुंचाना, तकलिफ देना ।


|| ॐ तत् सत् ||

धन लाभ विचार :-




|| ॐ ||

धनेश (व्दितीय भाव का अधिपति) यदि धन स्थान (व्दितीय भाव) में हो अथवा केंद्र (१, ४, ७, १०) भाव में हो तो जातक को “श्रम से सफलता” (शारीरिक / मानसिक श्रम) मिलती हैं तथा धन लाभ होता हैं |

धन भाव में शुभ ग्रह धनप्रद (धन प्रदान करने वाले) तथा धन भाव में पाप ग्रह धन नाशक (धन हनी करने वाले) होते हैं | यदि धन स्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टी या योग हो तब भी जातक को धन लाभ होता रहता हैं |

धनवान योग :-

धनेश यदि लाभ भाव (एकादश भाव) या लाभेश धन स्थान में हो अथवा धनेश तथा लाभेश (एकादश भाव अधिपति) दोनों ही केंद्र अथवा त्रिकोण (१, ४, ५, ७, ९, १०) में स्थित हो तो मनुष्य धनवान होता हैं |

व्यय योग :-

यदि धनेश त्रिक भाव (६, ८, १२) में स्थित हो तो जातक को आवक से ज्यादा खर्च की चिंता सताती हैं |


|| ॐ तत् सत् ||

Thursday, 24 August 2017

देह सुख विचार :-




|| ॐ ||

देह सुख विचार :-


लग्न स्थान में शुभ ग्रह तो मनुष्य सुन्दर व् आकर्षक होता हैं, इसके विपरीत यदि पाप ग्रह हो तो रूपहीन या अनाकर्षक होता हैं | लग्न स्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टी या योग हो तो शरीर सौख्य होता हैं |

लग्नेश विचार :-

लग्नेश (लग्न राशि का स्वामी ग्रह), नैसर्गिक शुभ ग्रह (बुध, गुरु शुक्र) इनमे से कोई भी केंद्र (लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम) भाव में या त्रिकोण (पंचम, नवम) भाव में हो तो जातक दीर्घायु, धनवान, बुद्धिमान तथा उच्च पदस्थ (बड़े ओहदे के सरकारी कर्मचारी) का प्रिय होता हैं |

श्रीमान योग :-

लग्नेश यदि चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो तथा शुभ ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र) की लग्नेश पर दृष्टी हो तो जातक यशस्वी (कार्य में यश पानेवाला), श्रीमान (मान सन्मान प्राप्त करने वाला) होता हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

Wednesday, 23 August 2017

ज्योतिष शाखाएँ और उनका उपयोग (Astrology Branches and their Use) :-



ज्योतिष में कई प्रकार (So Many) के साधन (Tools) दिए गए हैं, जैसे की वैदिक ज्योतिष / Vedic Astrology (सम्पूर्ण राशी, नवग्रह, नक्षत्र, पंचांग, मुहूर्त आदि सर्वांग विचार), जैमिनी पद्धति / Jaimini System (राशी दृष्टी का विशेष महत्व), नक्षत्र ज्योतिष / KP System (इसमें जन्मकुंडली में नक्षत्रो की स्थिति के अनुसार और उनके अधिपति के स्थितिअनुसार प्रश्न पर विचार किया जाता हैं), आचार्य वराहमिहिर पद्धति (आकाशवर्णन, ग्रह चार फल (ग्रहों की गति के अनुसार धरती पर मिलने वाले फल), ग्रहण फल, वास्तु विद्या आदि), इन मुख्य शाखाओ के अलावा और भी कई विचारणीय मुद्दे हैं जो ध्यान में रखना आवश्यक हैं.

एक ज्योतिषी (Astrologer) को इन सभी ज्योतिष शाखाओ (Astrology Branches) का ज्ञान (Knowledge) प्राप्त करना आवश्यक हैं, और जब किसी जातक का कोई विशेष प्रश्न (Respective Question) हो तब क्या उपयोग (Use) करना हैं यह तो ज्योतिषी पर एवं स्थिति पर ही आधारित (Depends on situation and/or Astrologer) हैं.

उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर (Doctor) शरीर के किसी भी स्पेसिफिक पार्ट (Specific Part in Body) का बहुत अभ्यास करके उस हिस्से (Part) के स्पेश्यालिस्ट (Specialist) बनते हैं लेकिन इस के पहले डॉक्टर को पुरे शरीर का ही अध्ययन कराया जाता हैं, बाद में उन्हें क्या उपयोग करना हैं ?, कहा करना हैं ?, कब करना हैं ? यह तो उनकी खुद की विज़न (Vision) पर आधारित हैं.


|| ॐ तत् सत ||

Monday, 21 August 2017

मांगलिक दोष :-




विवाह के समय गुण मिलन करते समय सबसे ज्यादा ध्यान देने वाला विषय याने " मंगल दोष अथवा मांगलिक " (भावी वर अथवा वधु की पत्रिका में मंगल की अशुभ स्थिति), कई बार तो इस दोष के कारण विवाह ना करने तक की सलाह दी जाती हैं |

" जब जन्म पत्रिका में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल स्थित हो तब जातक मांगलिक या मंगल दोष से युक्त कहलाता हैं, कई विद्वान् व्दितीय स्थान में स्थित मंगल को भी दोषी मानते हैं " |

नव ग्रहों में से विवाह गुण मिलन में चन्द्र, बुध, गुरु तथा शुक्र ग्रह शुभ माने जाते हैं और यह शुभ परिणामो में वृद्धि करते हैं अथवा वैवाहिक जीवन को सुखी बनाते हैं |
मंगल, शनि, राहू, केतु तथा सूर्य ग्रह अशुभ माने जाते हैं और इनमे भी मंगल सबसे ज्यादा उग्र स्वभाव का व सेनापति होने के कारण अधिक अशुभ माना जाता हैं इसी कारण यह दोष भी " मंगल के नाम से ही प्रसिद्ध हैं " |

मांगलिक दोष के अपवाद :-

१. यदि मंगल पर गुरु की दृष्टी हो तो मंगल दोष पूरी तरह से निर्बली हो जाता हैं और यह दोशास्पद नहीं रहता |

२. यदि मंगल अन्य शुभ ग्रह के साथ स्थित हो जैसे चन्द्र, बुध, शुक्र तब ऐसी स्थिति में भी मंगल दोष कम होता हैं |

३. यदि लड़के या लड़की की पत्रिका में उपरोक्त (१,४,७,८,१२) स्थान में मंगल हो और उसी स्थान में वैवाहिक भागीदार की पत्रिका में भी यदि शनि, राहू, केतु तथा सूर्य में से कोई स्थित हो तब भी मंगल दोष समान रूप से प्रभावी होता हैं और दोनों को मांगलिक मानते हुए विवाह के लिए " हामी भरी जा सकती हैं " |

४. मांगलिक दोष में सबसे अच्छा और छोटा उपाय याने " शिव " नाम स्मरण करना |


|| ॐ तत् सत् ||

Friday, 18 August 2017

नकारात्मक विचारधारा (Negativity)


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|| ॐ ||

जन्म पत्रिका में षष्ठेश का लग्न या लग्नेश (लग्न राशी का स्वामी ग्रह) से योग (दृष्टी, युति) हो रहा हो तो ऐसे जातक नकारात्मक विचार करने वाले होते हैं |
उपरोक्त ग्रह स्थिति होने पर जातक का दुसरो से (अधिकतर) वाद विवाद होता हैं तथा मित्र भी शत्रु जैसे जान पड़ते हैं |

-: अपवाद :-

उपरोक्त ग्रह स्थिति में यदि शुभ ग्रहों से युति / दृष्टी योग हो तो नकारात्मकता का प्रभाव कम होता हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

शारीरिक अस्वस्थता


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लग्नेश (लग्न में स्थित राशी का स्वामी ग्रह) यदि षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तो जातक की "रोग प्रतिकारक क्षमता कमजोर होती हैं" और ऐसे जातक बार बार बीमारीयों के शिकार होते हैं एवं छोटी से छोटी बीमारी भी ठीक होने में लम्बा समय लेती हैं | यदि लग्नेश का सम्बन्ध शुभ ग्रहों से स्थापित हो रहा हो तो बुरे परिणामो में कमी आती हैं तथा शारीरिक अस्वस्थता से जातक जल्द ही उबरता हैं |

लग्नेश यदि पाप कर्तरी (लग्नेश की स्थिति से व्दितीय तथा द्वादश भाव में पाप ग्रह स्थित हो तो) में तो जातक शारीरिक रूप से दुर्बल होता हैं |

|| ॐ तत् सत् ||

Friday, 16 June 2017

कर्मफल का ज्योतिष सम्बन्ध




|| ॐ ||

पुर्वजन्मार्जितं कर्म, शुभं वा यदि वाशुभम |
तस्य पक्ति ग्रहा: सर्वे, सुचयन्तीह जन्मनि ||

जन्म तथा मरण रूपी भव बंधन में (अनेक जन्म में किये गए कर्म) जो किये हुए कर्म हैं, उन सबका शुभ (अच्छा) तथा अशुभ (बुरा) रूप में प्राप्त होने वाला परिणाम सूर्य आदि नव ग्रह द्वारा इस जन्म में मानव जीवन में सूचित किया जाता / मिलता हैं |

All the planets indicate clearly whether we are enjoying or suffering now as a result of our actions in our previous birth.

स्वकर्म भोक्तुं जायन्ते, प्रायेणैव हि जन्तवः |
क्षीणे कर्मणि चान्यत्र, पुनर्गच्छन्ति देहिनः ||

आत्मा खुद के कर्म भोग को पूरा करने के लिए बार बार इस पृथ्वी पर शरीर के माध्यम से जन्म लेती रहती हैं, यह सम्पूर्ण प्रक्रिया (जन्म मरण रूपी चक्र) कर्म भोग की समाप्ति (माेक्ष) तक इसी प्रकार शुरू रहते हैं |

Soul takes fresh births for reaping the fruits of privious lives. This Cycle of births goes on until the attainment of Moksha.

प्राग्जन्मार्जितपुण्याघ, प्राबल्योद्रेकहेतुतः |
प्रारब्धसंज्ञिमानुष्य, जातौजातकचिन्तनम् ||

पूर्व जन्म अनुसार अच्छे अथवा बुरे कर्मों के प्राप्त होने वाले परिणाम को " प्रारब्ध " ऐसा कहा जाता हैं और इस प्रारब्ध द्वारा इस जन्म मे प्राप्त होने वाले परिणामो कि व्याख्या करना इसे ज्योतिष में "जातक वर्णन" कहा जाता हैं |

The balance of good or bad Karma brought forward from previous birth is "Prarabdha Karma" and the reading of this "Karmas / Jatak Varnan" that goes under the name of Astrology.
|| ॐ तत् सत् ||

Saturday, 29 April 2017

शुभारम्भ मुहूर्त




किसी भी नये कार्य (नया कारखाना, नया दुकान, नया व्यापार ई.) का शुभारम्भ चर राशी / चर लग्न (मेष, कर्क, तुला, मकर) में ना करे, अन्यथा कार्य का शुभारम्भ होने के कुछ दिनों में ही नये काम से मन उब जाएगा और दूसरा कार्य शुरू करने का विचार बार बार मन में आएगा |

|| ॐ तत् सत ||

Wednesday, 26 April 2017

ग्रह अवस्था



ग्रह की दीप्त अवस्था :-


जन्म पत्रिका में यदि ग्रह खुद के उच्च क्षेत्र (उच्च राशी) में स्थित हो तो वह ग्रह "दीप्त अवस्था" में हैं ऐसा अर्थ होता हैं | दीप्त का अर्थ होता हैं सजग रहना, प्रकाशित रहना |


उदहारण :-
सूर्यदेव मेष राशी में उच्च के होते हैं, यदि यह अवस्था किसी जातक के पत्रिका में हो तो उस जातक के पत्रिका में सूर्य के दीप्त अवस्था के फल प्रभाव प्राप्त होंगे |


फल :-
यदि ग्रह दीप्त अवस्था में हैं तो खुद के दशाकाल में जातक को मान, सम्मान, ख्याति की प्राप्ति होती हैं, तथा जिस कार्य को करे उस कार्य में जातक की विजय होती हैं |


|| ॐ तत् सत ||

गज केसरी योग



गज केसरी योग :-


चन्द्र के केंद्र में गुरु का होना याने “गज-केसरी” योग कहलाता हैं |


संस्कृत में गज का अर्थ हैं “हाथी” और केसरी का अर्थ हैं “शेर” यदि हम केवल इन दो शब्दों के अर्थ को समझ ले, तो आसानी से इस योग के बारे में समझ जायेंगे, क्योंकि “एक जंगल के राजा हैं तो दुसरे सबसे विशालकाय प्राणी” |


जिस जातक की कुंडली में गज केसरी योग होता हो और यदि वो दूषित न हो (किसी पाप ग्रह से देखा न जाता हो तथा पाप कर्तरी में ना हो) तो ऐसे योग में जन्मे व्यक्ति प्रायः जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त करते हैं जैसे,


१. उत्तम कुल (सद आचरण युक्त माता पिता), श्रेष्ठ परिवार आदि प्रारंभिक जीवन की पृष्टभूमि |


२. ऐसे जातको में औरों के मुकाबले सिखने तथा समझने की शक्ति उत्तम होती हैं, यह लोग जल्द ही विषय की गंभीरता को भाप लेते हैं |


३. जीवन में इन्हें अपार सफलता मिलती हैं क्योंकि “खुद महेनत करने में पीछे नहीं हटते” |


४. ऐसे जातको की जान पहचान का दायरा काफी बड़ा होता हैं तथा जन समुदाय से जुड़ने में इन्हें रूचि होती हैं |


५. किसी भी विषय की गहनता को समझने की शक्ति के कारण, “भाषण आदि देने में तथा लोगों को खुद की बात समझाने में माहिर होते हैं” |

|| ॐ तत् सत ||

Monday, 24 April 2017

जन्मपत्रिका देखने की विधि



जन्मपत्रिका देखने / जांचने की विधि :-


जन्मपत्रिका में किसी भाव की जाँच करते समय न केवल राशी को महत्व देना चाहिए बल्कि नवांश और अन्य समुचित वर्गों पर भी विचार करना चाहिए.


किसी भाव का विश्लेषण करने में निम्नालिखित तथ्यों पर सावधानी पूर्वक विचार करना चाहिए -

१. प्रश्न सम्बंधित भाव अधिपति के बल, दृष्टी, युति और स्थिति |

२. प्रश्न सम्बंधित भाव का बल |

३. प्रश्न सम्बंधित भाव, भावाधिपति और उस भाव में स्थित ग्रहों या उस भाव पर दृष्टी डालने वाले ग्रहों के "प्राकृतिक गुण" |

४. क्या कीसी विशेष भाव में बनने वाले योग से प्रश्न सम्बंधित प्रभाव में कोई परिवर्तन हुआ है ? |

५. प्रश्न सम्बंधित भाव के स्वामी ग्रह की उच्च / नीच / सम स्थिति का भी प्रश्न के उत्तर पर सामान रूप से महत्त्व हैं |

६. प्रश्न सम्बंधित भाव के स्वामी या उस विशेष भाव का स्वामी जिस भाव में हैं उसके स्वामी की नवांश में अनुकूल / प्रतिकूल स्थिति |

किसी भी प्रश्न के उत्तर तथा निष्कर्ष पर पहुचने से पूर्व उपरोक्त तथ्यों पर समुचित रूप से विचार कर लेना आवश्यक हैं |

|| ॐ तत् सत ||

व्यय भाव



जन्मपत्रिका के द्वादश भाव से "खर्च" का अनुमान लगाया जाता है |


घाटा, व्यय, दंड, कारावास, अस्पताल में भर्ती होना, बुरी आदतें, ध्यान, गुप्त शत्रु, जन्म स्थान से दूर निवास आदि का ज्ञान द्वादश भाव से प्राप्त होता है |


व्यक्ति की सोच से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है, इस व्यक्तित्व विकास में बाधक होती है हमारी (अच्छी / बुरी) आदते | यदि हम एक लाख रुपये कमाए पर हमें जुआ, शराब जैसी बुरी आदते हो तो वह पैसा हमारी बर्बादी का कारण बनता है |



जेल (कारावास) जाना, अस्पताल में भर्ती होना बड़ी बीमारी होना आदि बाते भी हमें द्वादश स्थान के द्वारा ज्ञात होती है |


गुप्त शत्रु तथा चुगलखोरी भी इसी स्थान से जानी जा सकती है |


द्वादश स्थान से दो मुख्य बाते जानी जाती है, विदेश गमन तथा ध्यान (योग मार्ग की उच्चतम अवस्था) |



|| ॐ तत् सत ||

लाभ स्थान



एकादश स्थान को "सर्व सिद्धि प्राप्ति" स्थान कहते है |


ज्योतिष में जन्मपत्रिका के एकादाश स्थान (11th House) को सबसे उत्तम स्थान कहा है, इस स्थान के समाहित विषयो को देखे तो यह सत्य भी प्रतीत होगा आइये जाने कैसे,


सर्वप्रथम एकादश स्थान के विषय लाभ, आमदनी, प्राप्ति, ऐश्वर्य, प्रशंसा (कार्य की वाहवाही) आदी, जन्मपत्रिका में हरेक स्थान एक विशेष महत्व रखता है परन्तु एकादश स्थान इनमे भी विशेष है, इसका कारण है की एकादश स्थान से हमारे कर्मो द्वारा प्राप्त लाभ देखा जाता है |


हम हमारे जीवन में आनंदित अवश्य रहते है, पर याद तो कीजिये वो समय जब हमें पहली बार स्कूल में अच्छे नंबर से पास होने पर हेड मास्टर जी द्वारा बक्षिस मिला और हमारा नाम पूरी स्लुल में अनाउंस किया गया, याफिर हम जब नोकरी पर लगे और पहली पगार हाथ में आने का आनंद ये हमारे जीवन के सबसे जादा सुखद क्षण होते है |



प्रशंसा (गुण गान) सभी को अच्छी लगती है, पर यदि वो सच में मन से की जाये तो ! कोई उपरी दिखावा कर रहा हो तो हमे जरा भी अच्छा नहीं लगता क्योकि प्रशंसा हमें हमारे कर्तव्यों का पालन करने की और प्रवृत्त करती है |


|| ॐ तत् सत ||

कर्म स्थान



ज्योतिष में दशम भाव को "कर्म स्थान" कहा जाता है |


जन्म पत्रिका का दशम भाव हमारे कर्म को दर्शाता है जिसे आजीविका के साधन के रूप में उपयोग में लाया जाता हो | दशम स्थान से व्यापर, नौकरी / नौकरी में उच्च स्थान, कार्य में अभिरुचि तथा उत्तम कार्य कौशल को दर्शाता है |


कई बार जब हम समझ नहीं पाते की किस दिशा में हमारा भाग्य साथ देगा अर्थात क्या कार्य करना उचित है, उस समय हम ज्योतिष के माध्यम से कार्य को सुनिश्चित कर सकते है |


यदि हम नौकरी कर रहे है तो हमें उच्च स्थान (Promotion) की प्राप्ति कब होगी, इस विषय में भी दशम स्थान तथा उससे सम्बंधित ग्रह हमें दिशा निर्देश कर सकते है |


आज के स्पर्धा के युग में हर कोई जहा जीवन में आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में भाग रहा है, उसी में यदि सफलता प्राप्त करनी हो तो कौनसे क्षेत्र को आमदनी का माध्यम बनाया जाये यह जानने के लिए जन्मपत्रिका का "दशम स्थान" एक मुख्य स्थान है |


|| ॐ तत् सत ||