|| ॐ ||
धर्म कार्य हेतु व्यय :-
यदि व्ययेश (द्वादश भाव अधिपती) शुभ ग्रहो के साथ स्थित हो अथवा व्ययेश पर शुभ ग्रहो की दृष्टी हो तो जातक का धन धार्मिक कार्य (औरों की मदत करना, सामाजिक विकास हेतु, दुसरों के हीत) मे खर्च होता हैं |
अधर्म हेतु व्यय :-
यदि व्ययेश (द्वादश भाव अधिपती) पाप ग्रहो के साथ स्थित हो अथवा व्ययेश पर पाप ग्रहो की दृष्टी हो तो जातक का धन अधार्मिक कार्य (औरों को सताना, सामाज के अहीत) मे खर्च होता हैं |
नोट :- धर्म का अर्थ हैं दुसरों को खुश रखना, अधर्म का अर्थ हैं दुसरों को हानि पहुंचाना, तकलिफ देना ।
|| ॐ तत् सत् ||
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