ज्योतिष में नवम स्थान को "भाग्य" स्थान कहा जाता है,
संस्कृत में एक उक्ति है "भाग्यम फलती सर्वत्र" अर्थात "यदि हमारा भाग्य साथ दे तो सब कुछ हो सकता है" (कठिन से कठिन कार्य भी), पर यदि हमारा भाग्य कमज़ोर है तो हमारी पूरी महेनत से भी मनचाहे परिणाम प्राप्त नहीं होते |
आइये भाग्य को और आसानी से समझते है, भाग्य याने हमारे पूर्व अर्जित अच्छे कर्म | यदि हमने कुछ अच्छा किया है, तो निश्चित रूप से परिणाम हमारे पक्ष में प्राप्त होंगे, इसके विपरीत हमसे जाने अनजाने कुछ गलत हो गया हो तो हमें भाग्य साथ नहीं देगा अर्थात "हमारे कर्म ही हमारे भाग्य को अच्छा या बुरा बनाते है" |
नवम स्थान से गुरु, पिता, पौत्र (पोता), वंश वृद्धि आदि देखा जाता है आइये समझे इन के तथ्यों को, सर्वप्रथम गुरु तथा पिता यदि हमने पूर्व जन्म में अच्छे कर्म किये है तब तो हमें इस जन्म में उत्तम मार्गदर्शक (गुरु) तथा पिता प्राप्त होते है एवं यह जीवन भी धन्य होता है |
नवम स्थान से वंश वृद्धि (पोता आदि) के सम्बन्ध में विचार किया जाता है क्योंकि यह भाव पंचम का पंचम अर्थात हमारे पुत्र भाव से पंचम है जो की उनकी संतानों को दर्शाता है |
धन्य है हमारे ऋषि मुनि एवं उनका दीर्घ अवलोकन जो हमारे लिए इतना गहरा तथा हर समय हमारे प्रश्नों के समाधान के लिए ज्योतिष तथा वास्तु के ज्ञान की धरोहर हमारे लिए निर्माण कर गए |
मेरे सभी गुरुवरो को मेरा दंडवत प्रणाम जिन्होंने मुझे इस ज्ञान से अवगत कराया तथा समय समय पर मार्गदर्शित करते है |
|| ॐ तत् सत ||
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