|| श्री गणेशाय नमः ||
हम कई बार अनुभव करते हैं किसी विशेष कार्य अथवा क्रिया को यदि सही (शुभ) समय पर किया जाये तो उसके लाभ प्राप्त होते हैं और इसके विपरीत उचित कार्य अथवा क्रिया गलत समय पर किये जाये तो हानि होती हैं, इसे उदहारण से समझते हैं जैसे, रात्रि काल में सोना जरुरी हैं परन्तु यदि किसी कारणवश रात्रि में पर्याप्त निंद ना हुई हो तो दुसरे दिन शरीर में अस्वस्थता, जकडन आदि पूरा दिन अनुभव होती हैं और हमारा दूसरा दिन भी व्यर्थ हो जाता हैं इसी तरह यदि सही समय पर सही कार्य अथवा क्रिया नहीं की गई तो उसके दुष्परिणाम हमें भविष्य में भुगतने पड़ते हैं और इन्ही दुष्परिणामों से / हानि से बचने हेतु हमारे मनीषियों (ऋषि / मुनि) ने ज्योतिष शास्त्र में मुहुर्त शाखा की रचना की हैं जिसके उपयोग से मानव खुद के जीवन को उच्च स्तर को प्राप्त कर सके |
जीवन में मुहुर्त का सर्वाधिक महत्त्व हैं, जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य जिन गतिविधियों से गुजरता हैं उनमे उसे कलानुरूप अच्छे - बुरे परिणाम प्राप्त होते हैं, यदि इन गतिविधियों के समय मनुष्य "ज्योतिष शास्त्र के मुहुर्त शाखा" का जन्मकुंडली के आधार पर अनुसरण करे तो निश्चित ही जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होता हैं |
-: मुहूर्त का उपयोग :-
१. हमें नया व्यवसाय शुरू करना हैं तो कब करने से हमें वह लाभप्रद रहेगा यह मुहूर्त के माध्यम से जाना जा सकता हैं, जिससे वह कार्य हमारे पतन का कारक ना बनकर हमारी प्रगति का करक बने |
२. हमें गृह निर्माण करना हैं (नया मकान बनाना हैं) तो कब करने से हमारा कार्य सुचारू रूप से होगा यह भी मुहूर्त के माध्यम से जाना जा सकता हैं |
३. नया वाहन कब ख़रीदे तो उससे हमें लाभ प्राप्त होगा यह भी मुहूर्त के माध्यम से जाना जा सकता हैं |
४. महत्वपूर्ण संस्कार जैसे, नामकरण, मुंडन, कर्णवेध, विद्यारम्भ, विवाह, यात्रा आरम्भ यह सब कार्य मुहूर्त के अनुसार करने चाहिए |
५. नये वस्त्र खरीदना तथा परिधान करना, आभूषण खरीदना, व्यवसाय में नया सौदा करना यह सब कार्य भी मुहूर्त के अनुसार करने पर शुभ परिणामो में वृद्धि होती हैं |
|| इति शुभम ||
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