|| ॐ ||
व्रण / चोट :-
यदि पाप ग्रह षष्ठेश (षष्ठ भाव का अधिपति) हो तथा लग्न, षष्ठ, अष्टम भाव में स्थित हो तथा जो राशि छठे भाव में हो उस राशी से जिस अंग का विचार होता हैं उस शारीरिक अंग में व्रण / घाव / चोट लगती / होती हैं |
यदि पाप ग्रह षष्ठेश (षष्ठ भाव का अधिपति) हो तथा लग्न, षष्ठ, अष्टम भाव में स्थित हो तथा जो राशि छठे भाव में हो उस राशी से जिस अंग का विचार होता हैं उस शारीरिक अंग में व्रण / घाव / चोट लगती / होती हैं |
राशियों का अंगविभाग:-
मेष = सिर, वृषभ = मुख, मिथुन = गला, कर्क = छाती,
सिंह = पेट, कन्या = बस्ती प्रदेश, तुला = कटी / कमर, वृश्चिक = गुप्तांग,
धनु = जांघे, मकर = घुटने, कुम्भ = पिंडलिया, मीन = पैर |
मेष = सिर, वृषभ = मुख, मिथुन = गला, कर्क = छाती,
सिंह = पेट, कन्या = बस्ती प्रदेश, तुला = कटी / कमर, वृश्चिक = गुप्तांग,
धनु = जांघे, मकर = घुटने, कुम्भ = पिंडलिया, मीन = पैर |
डर / भय :-
यदि षष्ठेश प्रतिकूल स्थिति (नीच राशि, शत्रु राशी, पाप ग्रहों से पिडित) में हो तथा चन्द्र निर्बली हो तो जातक भयग्रस्त होता हैं |
यदि षष्ठेश प्रतिकूल स्थिति (नीच राशि, शत्रु राशी, पाप ग्रहों से पिडित) में हो तथा चन्द्र निर्बली हो तो जातक भयग्रस्त होता हैं |
|| ॐ तत् सत् ||
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