ज्योतिष में कई प्रकार (So Many) के साधन (Tools) दिए गए हैं, जैसे की वैदिक ज्योतिष / Vedic Astrology (सम्पूर्ण राशी, नवग्रह, नक्षत्र, पंचांग, मुहूर्त आदि सर्वांग विचार), जैमिनी पद्धति / Jaimini System (राशी दृष्टी का विशेष महत्व), नक्षत्र ज्योतिष / KP System (इसमें जन्मकुंडली में नक्षत्रो की स्थिति के अनुसार और उनके अधिपति के स्थितिअनुसार प्रश्न पर विचार किया जाता हैं), आचार्य वराहमिहिर पद्धति (आकाशवर्णन, ग्रह चार फल (ग्रहों की गति के अनुसार धरती पर मिलने वाले फल), ग्रहण फल, वास्तु विद्या आदि), इन मुख्य शाखाओ के अलावा और भी कई विचारणीय मुद्दे हैं जो ध्यान में रखना आवश्यक हैं.
एक ज्योतिषी (Astrologer) को इन सभी ज्योतिष शाखाओ (Astrology Branches) का ज्ञान (Knowledge) प्राप्त करना आवश्यक हैं, और जब किसी जातक का कोई विशेष प्रश्न (Respective Question) हो तब क्या उपयोग (Use) करना हैं यह तो ज्योतिषी पर एवं स्थिति पर ही आधारित (Depends on situation and/or Astrologer) हैं.
उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर (Doctor) शरीर के किसी भी स्पेसिफिक पार्ट (Specific Part in Body) का बहुत अभ्यास करके उस हिस्से (Part) के स्पेश्यालिस्ट (Specialist) बनते हैं लेकिन इस के पहले डॉक्टर को पुरे शरीर का ही अध्ययन कराया जाता हैं, बाद में उन्हें क्या उपयोग करना हैं ?, कहा करना हैं ?, कब करना हैं ? यह तो उनकी खुद की विज़न (Vision) पर आधारित हैं.
|| ॐ तत् सत ||
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