लग्नेश (लग्न में स्थित राशी का स्वामी ग्रह) यदि षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तो जातक की "रोग प्रतिकारक क्षमता कमजोर होती हैं" और ऐसे जातक बार बार बीमारीयों के शिकार होते हैं एवं छोटी से छोटी बीमारी भी ठीक होने में लम्बा समय लेती हैं | यदि लग्नेश का सम्बन्ध शुभ ग्रहों से स्थापित हो रहा हो तो बुरे परिणामो में कमी आती हैं तथा शारीरिक अस्वस्थता से जातक जल्द ही उबरता हैं |
लग्नेश यदि पाप कर्तरी (लग्नेश की स्थिति से व्दितीय तथा द्वादश भाव में पाप ग्रह स्थित हो तो) में तो जातक शारीरिक रूप से दुर्बल होता हैं |
|| ॐ तत् सत् ||
No comments :
Post a Comment