"मंत्र" की मानवीय जीवन में आवश्यकता :-
मंत्र इस शब्द में मुल रूप से दो अक्षर समाविष्ट है |
प्रथम अक्षर है 'म' जिसका सीधा सम्बन्ध हमारे 'मन' से है |
द्वितीय अक्षर है 'त्र' जिसका सम्बन्ध पवित्रता से अर्थात अकारण तनाव को दूर करने से, शुद्धता से है |
परिभाषा :- जो मन को पवित्र कर हमारी बुद्धि को शुद्ध तथा निर्मल करता है उसे मंत्र कहते हैं |
आज के समय में कई प्रकार के दुखो के कारण हम अकारण ही भटकते है, क्योकि हमारा लक्ष्य केन्द्रित नहीं है, लक्ष्य केन्द्रित नहीं है क्योंकि हमारी बुद्धि शुद्ध नहीं है, यदि मंत्र जप के प्रयोग से बुद्धि को शुद्ध कर लीया जाये तो निश्चित रूप से हमारा ध्येय केंद्र बिंदु (हम जो पाना चाहते हैं) बन कर हमारे सामने होगा और हम खुद के लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए प्रयासरत हो जायेगे (जीतोड़ महेनत करेंगे) जिससे हमें लक्ष्य प्राप्ती अवश्य होगी |
इसी कारण हमारे ऋषि मुनियों ने मंत्र साधना का सरल मार्ग हमें विरासत में दिया है |
|| ॐ तत् सत ||
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