|| ॐ ||
धनेश (व्दितीय भाव का अधिपति) यदि धन स्थान (व्दितीय भाव) में हो अथवा केंद्र (१, ४, ७, १०) भाव में हो तो जातक को “श्रम से सफलता” (शारीरिक / मानसिक श्रम) मिलती हैं तथा धन लाभ होता हैं |
धन भाव में शुभ ग्रह धनप्रद (धन प्रदान करने वाले) तथा धन भाव में पाप ग्रह धन नाशक (धन हनी करने वाले) होते हैं | यदि धन स्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टी या योग हो तब भी जातक को धन लाभ होता रहता हैं |
धनवान योग :-
धनेश यदि लाभ भाव (एकादश भाव) या लाभेश धन स्थान में हो अथवा धनेश तथा लाभेश (एकादश भाव अधिपति) दोनों ही केंद्र अथवा त्रिकोण (१, ४, ५, ७, ९, १०) में स्थित हो तो मनुष्य धनवान होता हैं |
व्यय योग :-
यदि धनेश त्रिक भाव (६, ८, १२) में स्थित हो तो जातक को आवक से ज्यादा खर्च की चिंता सताती हैं |
|| ॐ तत् सत् ||
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