Practial Vastu / प्रायोगिक वास्तु

वास्तु शास्त्र” हमारे पूर्वजों की एक महान देन हैंजो हमें जीवन में उत्तरोत्तर प्रगतीपथ की ओर अग्रसर करती हैं हम जिस घर / भवन में रहते हैंजिस कार्यालय / कार्यस्थल में कर्म करते हैं वह घर / भवन तथा कार्यालय / कार्यस्थल वास्तु” कहलाता हैं |
हम जिस भवन / घर में निवास करते हैं वहा यदि हमें शांति प्राप्त ना होती होजिस कार्यालय / कार्यस्थल में हमें पूरा दिन महेनत करने पर भी मनचाहे परिणाम प्राप्त ना हो रहे होतो इसमें हमारा कोई दोष नहीं हैंयह एक प्रकार का वास्तुदोष” हैंजहा मनचाहा परिणाम हमारे जीवन में प्राप्त नहीं होता |
प्रायोगिक वास्तु का अर्थ हैं प्रयोग से सिद्ध” किया हुआ (कई लोगो के जीवन में बदलाव देखने के बाद अपनाई गई विधि)प्रायोगिक वास्तु में दिशाशक्ति तथा पञ्चतत्त्व (अग्निपृथ्वीजलवायु,आकाश) के आधार पर कार्य किया जाता हैंप्रायोगिक वास्तु अत्यंत आसान हैं इसमें घर / भवन / कार्यालय / कार्यस्थल में किसी भी प्रकार के तोड़ - फोड़ की कोई आवश्यकता नहीं हैं 

-: दिशाशक्ति :-

प्रत्येक दिशा का एक निर्धारित कार्य वास्तु शास्त्र के ग्रंथो में दर्शाया गया हैं (उदहारण :- आग्नेय दिशा में रसोईघर / अग्नि से सम्बंधित कार्य करने चाहिए इत्यादि)जब हम उस दिशा के निहत कार्य के विरुद्ध कोई कार्य / गतिविधि करते हैं तो उस दिशा की शक्ति कम हो जाती हैं और इसके कारण हमें मनचाहे परिणाम प्राप्त नहीं होते |

-: तत्त्व शक्ति :-

हमारा शरीर तथा सकल सृष्टि पञ्च तत्त्व / पांच महाभूत (अग्निपृथ्वीजलवायुआकाश) से मिल कर बने हैंयदि हमारे शरीर में किसी तत्त्व की कमी हो जाये तो हमारा शरीर बेजान हो जाएगाइसी तरह यदि हमारे वास्तु” (घर / भवन / कार्यालय / कार्यस्थल) के पञ्च तत्त्व में किसी प्रकार का कोई विकार आ जाये तो उस तत्त्व की कमी से हमारे मन परहमारे कर्म पर असर पड़ता हैं |

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