परिश्रम से सफलता :-
यदि तृतीय भाव शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो अथवा तृतीयेश (तृतीय भाव अधिपति) तृतीय में हो अथवा तृतीयेश व मंगल (नैसर्गिक भ्रातृ कारक) केंद्र अथवा त्रिकोण (१, ४, ५, ७, ९, १०) स्थान में हो तो मनुष्य पराक्रमी होता हैं तथा परिश्रम से सफलता प्राप्त करता हैं |
यदि तृतीय भाव शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो अथवा तृतीयेश (तृतीय भाव अधिपति) तृतीय में हो अथवा तृतीयेश व मंगल (नैसर्गिक भ्रातृ कारक) केंद्र अथवा त्रिकोण (१, ४, ५, ७, ९, १०) स्थान में हो तो मनुष्य पराक्रमी होता हैं तथा परिश्रम से सफलता प्राप्त करता हैं |
भ्रातृसौख्य विचार :-
यदि मंगल व तृतीयेश तृतीय स्थान को देखते हो अथवा तृतीयेश तृतीय में हो व तृतीय स्थान पर शुभ ग्रहों की दृष्टी हो तो भ्रातृसौख्य (भाई बहन का सुख) प्राप्त होता हैं |
यदि मंगल व तृतीयेश तृतीय स्थान को देखते हो अथवा तृतीयेश तृतीय में हो व तृतीय स्थान पर शुभ ग्रहों की दृष्टी हो तो भ्रातृसौख्य (भाई बहन का सुख) प्राप्त होता हैं |
नोट:- भ्रातृ सुख योग का विचार करते समय द्रेष्काण कुंडली तथा योगकारक ग्रह का विचार करना आवश्यक हैं |
|| ॐ तत् सत् ||
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