"उपाय" यह एक संस्कृत (सभी भाषाओ की जननी) शब्द है, समस्याए जीवन का अविभाज्य अंग है सभीके जीवन में छोटी बड़ी समस्याए होती है परन्तु एक सही "उपाय" हमारे जीवन को तथा हमारे जीवन स्तर को प्रभावित कर सकता है. हमारे जीवन में सुखरूपि बदल लाने की ताकत रखता है,जिसके कारण हमारा जीवन सुख, शांति, ऐश्वर्य तथा समृद्धि से जगमगाने लगता है |
-: मंत्र चिकित्सा :-
मंत्र इस शब्द में मुल रूप से दो अक्षर समाविष्ट है |
प्रथम अक्षर है 'म' जिसका सीधा सम्बन्ध हमारे 'मन' से है |
द्वितीय अक्षर है 'त्र' जिसका सम्बन्ध पवित्रता से अर्थात अकारण तनाव को दूर करने से हैं, शुद्धता से है | मंत्र का अर्थ हैं जो मन को पवित्र कर हमारी बुद्धि को शुद्ध, निर्मल करता है |
आज हम अकारण ही भटकते है क्योकि हमारा लक्ष्य केन्द्रित नहीं है, लक्ष्य केन्द्रित नहीं है क्योंकि हमारी बुद्धि शुद्ध नहीं है | यदि मंत्र प्रयोग (जप) से बुद्धि शुद्ध कर ली जाये तो निश्चित रूप से हमारा ध्येय केंद्र बिंदु बन कर हम प्रयास रत हो जायेगे एवं लक्ष्य प्राप्ती अवश्य होगी | इसी कारण हमारे ऋषि मुनियों ने “मंत्र साधना” का सरल मार्ग हमें विरासत में दिया है | “जन्पत्रिका के दोष तथा विशेष दिशा के वास्तुदोष” को नित्य प्रति मंत्र जप की शक्ति से दूर किया जा सकता हैं | इसी जन्म के नहीं बल्कि पूर्व जन्मो के संचित कर्मो को भी मंत्र जप द्वारा ठीक किया जा सकता हैं |
प्रथम अक्षर है 'म' जिसका सीधा सम्बन्ध हमारे 'मन' से है |
द्वितीय अक्षर है 'त्र' जिसका सम्बन्ध पवित्रता से अर्थात अकारण तनाव को दूर करने से हैं, शुद्धता से है | मंत्र का अर्थ हैं जो मन को पवित्र कर हमारी बुद्धि को शुद्ध, निर्मल करता है |
आज हम अकारण ही भटकते है क्योकि हमारा लक्ष्य केन्द्रित नहीं है, लक्ष्य केन्द्रित नहीं है क्योंकि हमारी बुद्धि शुद्ध नहीं है | यदि मंत्र प्रयोग (जप) से बुद्धि शुद्ध कर ली जाये तो निश्चित रूप से हमारा ध्येय केंद्र बिंदु बन कर हम प्रयास रत हो जायेगे एवं लक्ष्य प्राप्ती अवश्य होगी | इसी कारण हमारे ऋषि मुनियों ने “मंत्र साधना” का सरल मार्ग हमें विरासत में दिया है | “जन्पत्रिका के दोष तथा विशेष दिशा के वास्तुदोष” को नित्य प्रति मंत्र जप की शक्ति से दूर किया जा सकता हैं | इसी जन्म के नहीं बल्कि पूर्व जन्मो के संचित कर्मो को भी मंत्र जप द्वारा ठीक किया जा सकता हैं |
-: व्रत तथा उपवास :-
किसी निश्चित फल की प्राप्ति के लिए किया गया शारीरिक श्रम “व्रत” कहलाता हैं, उपवास का अर्थ हैं“वासनाओ से ऊपर उठना” और खुद को सत्कार्य में प्रवृत्त करना, जन्मपत्रिका के अनेक दोषों को दूर करने के लिए व्रत का विशेष महत्त्व होता हैं, व्रत से हमें आत्मबल की प्राप्ति होती हैं तथा उपवास से हमें शारीरिक बल एवं सहनशीलता प्राप्त होती हैं |
-: रत्न चिकित्सा :-
रत्न चिकित्सा से हमारे शरीर से नकारात्मक उर्जा निकलकर, हमें ब्रह्माण्ड में स्थित सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती हैं, ग्रहदोष होने पर रत्न को शरीर पर धारण करने से प्राकृतिक उर्जा में बढ़ोतरी होती हैं |
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