Saturday, 29 April 2017

शुभारम्भ मुहूर्त




किसी भी नये कार्य (नया कारखाना, नया दुकान, नया व्यापार ई.) का शुभारम्भ चर राशी / चर लग्न (मेष, कर्क, तुला, मकर) में ना करे, अन्यथा कार्य का शुभारम्भ होने के कुछ दिनों में ही नये काम से मन उब जाएगा और दूसरा कार्य शुरू करने का विचार बार बार मन में आएगा |

|| ॐ तत् सत ||

Wednesday, 26 April 2017

ग्रह अवस्था



ग्रह की दीप्त अवस्था :-


जन्म पत्रिका में यदि ग्रह खुद के उच्च क्षेत्र (उच्च राशी) में स्थित हो तो वह ग्रह "दीप्त अवस्था" में हैं ऐसा अर्थ होता हैं | दीप्त का अर्थ होता हैं सजग रहना, प्रकाशित रहना |


उदहारण :-
सूर्यदेव मेष राशी में उच्च के होते हैं, यदि यह अवस्था किसी जातक के पत्रिका में हो तो उस जातक के पत्रिका में सूर्य के दीप्त अवस्था के फल प्रभाव प्राप्त होंगे |


फल :-
यदि ग्रह दीप्त अवस्था में हैं तो खुद के दशाकाल में जातक को मान, सम्मान, ख्याति की प्राप्ति होती हैं, तथा जिस कार्य को करे उस कार्य में जातक की विजय होती हैं |


|| ॐ तत् सत ||

गज केसरी योग



गज केसरी योग :-


चन्द्र के केंद्र में गुरु का होना याने “गज-केसरी” योग कहलाता हैं |


संस्कृत में गज का अर्थ हैं “हाथी” और केसरी का अर्थ हैं “शेर” यदि हम केवल इन दो शब्दों के अर्थ को समझ ले, तो आसानी से इस योग के बारे में समझ जायेंगे, क्योंकि “एक जंगल के राजा हैं तो दुसरे सबसे विशालकाय प्राणी” |


जिस जातक की कुंडली में गज केसरी योग होता हो और यदि वो दूषित न हो (किसी पाप ग्रह से देखा न जाता हो तथा पाप कर्तरी में ना हो) तो ऐसे योग में जन्मे व्यक्ति प्रायः जीवन में सभी प्रकार के सुख प्राप्त करते हैं जैसे,


१. उत्तम कुल (सद आचरण युक्त माता पिता), श्रेष्ठ परिवार आदि प्रारंभिक जीवन की पृष्टभूमि |


२. ऐसे जातको में औरों के मुकाबले सिखने तथा समझने की शक्ति उत्तम होती हैं, यह लोग जल्द ही विषय की गंभीरता को भाप लेते हैं |


३. जीवन में इन्हें अपार सफलता मिलती हैं क्योंकि “खुद महेनत करने में पीछे नहीं हटते” |


४. ऐसे जातको की जान पहचान का दायरा काफी बड़ा होता हैं तथा जन समुदाय से जुड़ने में इन्हें रूचि होती हैं |


५. किसी भी विषय की गहनता को समझने की शक्ति के कारण, “भाषण आदि देने में तथा लोगों को खुद की बात समझाने में माहिर होते हैं” |

|| ॐ तत् सत ||

Monday, 24 April 2017

जन्मपत्रिका देखने की विधि



जन्मपत्रिका देखने / जांचने की विधि :-


जन्मपत्रिका में किसी भाव की जाँच करते समय न केवल राशी को महत्व देना चाहिए बल्कि नवांश और अन्य समुचित वर्गों पर भी विचार करना चाहिए.


किसी भाव का विश्लेषण करने में निम्नालिखित तथ्यों पर सावधानी पूर्वक विचार करना चाहिए -

१. प्रश्न सम्बंधित भाव अधिपति के बल, दृष्टी, युति और स्थिति |

२. प्रश्न सम्बंधित भाव का बल |

३. प्रश्न सम्बंधित भाव, भावाधिपति और उस भाव में स्थित ग्रहों या उस भाव पर दृष्टी डालने वाले ग्रहों के "प्राकृतिक गुण" |

४. क्या कीसी विशेष भाव में बनने वाले योग से प्रश्न सम्बंधित प्रभाव में कोई परिवर्तन हुआ है ? |

५. प्रश्न सम्बंधित भाव के स्वामी ग्रह की उच्च / नीच / सम स्थिति का भी प्रश्न के उत्तर पर सामान रूप से महत्त्व हैं |

६. प्रश्न सम्बंधित भाव के स्वामी या उस विशेष भाव का स्वामी जिस भाव में हैं उसके स्वामी की नवांश में अनुकूल / प्रतिकूल स्थिति |

किसी भी प्रश्न के उत्तर तथा निष्कर्ष पर पहुचने से पूर्व उपरोक्त तथ्यों पर समुचित रूप से विचार कर लेना आवश्यक हैं |

|| ॐ तत् सत ||

व्यय भाव



जन्मपत्रिका के द्वादश भाव से "खर्च" का अनुमान लगाया जाता है |


घाटा, व्यय, दंड, कारावास, अस्पताल में भर्ती होना, बुरी आदतें, ध्यान, गुप्त शत्रु, जन्म स्थान से दूर निवास आदि का ज्ञान द्वादश भाव से प्राप्त होता है |


व्यक्ति की सोच से ही व्यक्तित्व का निर्माण होता है, इस व्यक्तित्व विकास में बाधक होती है हमारी (अच्छी / बुरी) आदते | यदि हम एक लाख रुपये कमाए पर हमें जुआ, शराब जैसी बुरी आदते हो तो वह पैसा हमारी बर्बादी का कारण बनता है |



जेल (कारावास) जाना, अस्पताल में भर्ती होना बड़ी बीमारी होना आदि बाते भी हमें द्वादश स्थान के द्वारा ज्ञात होती है |


गुप्त शत्रु तथा चुगलखोरी भी इसी स्थान से जानी जा सकती है |


द्वादश स्थान से दो मुख्य बाते जानी जाती है, विदेश गमन तथा ध्यान (योग मार्ग की उच्चतम अवस्था) |



|| ॐ तत् सत ||

लाभ स्थान



एकादश स्थान को "सर्व सिद्धि प्राप्ति" स्थान कहते है |


ज्योतिष में जन्मपत्रिका के एकादाश स्थान (11th House) को सबसे उत्तम स्थान कहा है, इस स्थान के समाहित विषयो को देखे तो यह सत्य भी प्रतीत होगा आइये जाने कैसे,


सर्वप्रथम एकादश स्थान के विषय लाभ, आमदनी, प्राप्ति, ऐश्वर्य, प्रशंसा (कार्य की वाहवाही) आदी, जन्मपत्रिका में हरेक स्थान एक विशेष महत्व रखता है परन्तु एकादश स्थान इनमे भी विशेष है, इसका कारण है की एकादश स्थान से हमारे कर्मो द्वारा प्राप्त लाभ देखा जाता है |


हम हमारे जीवन में आनंदित अवश्य रहते है, पर याद तो कीजिये वो समय जब हमें पहली बार स्कूल में अच्छे नंबर से पास होने पर हेड मास्टर जी द्वारा बक्षिस मिला और हमारा नाम पूरी स्लुल में अनाउंस किया गया, याफिर हम जब नोकरी पर लगे और पहली पगार हाथ में आने का आनंद ये हमारे जीवन के सबसे जादा सुखद क्षण होते है |



प्रशंसा (गुण गान) सभी को अच्छी लगती है, पर यदि वो सच में मन से की जाये तो ! कोई उपरी दिखावा कर रहा हो तो हमे जरा भी अच्छा नहीं लगता क्योकि प्रशंसा हमें हमारे कर्तव्यों का पालन करने की और प्रवृत्त करती है |


|| ॐ तत् सत ||

कर्म स्थान



ज्योतिष में दशम भाव को "कर्म स्थान" कहा जाता है |


जन्म पत्रिका का दशम भाव हमारे कर्म को दर्शाता है जिसे आजीविका के साधन के रूप में उपयोग में लाया जाता हो | दशम स्थान से व्यापर, नौकरी / नौकरी में उच्च स्थान, कार्य में अभिरुचि तथा उत्तम कार्य कौशल को दर्शाता है |


कई बार जब हम समझ नहीं पाते की किस दिशा में हमारा भाग्य साथ देगा अर्थात क्या कार्य करना उचित है, उस समय हम ज्योतिष के माध्यम से कार्य को सुनिश्चित कर सकते है |


यदि हम नौकरी कर रहे है तो हमें उच्च स्थान (Promotion) की प्राप्ति कब होगी, इस विषय में भी दशम स्थान तथा उससे सम्बंधित ग्रह हमें दिशा निर्देश कर सकते है |


आज के स्पर्धा के युग में हर कोई जहा जीवन में आगे बढ़ने की अंधी दौड़ में भाग रहा है, उसी में यदि सफलता प्राप्त करनी हो तो कौनसे क्षेत्र को आमदनी का माध्यम बनाया जाये यह जानने के लिए जन्मपत्रिका का "दशम स्थान" एक मुख्य स्थान है |


|| ॐ तत् सत ||

भाग्य भाव



ज्योतिष में नवम स्थान को "भाग्य" स्थान कहा जाता है,
संस्कृत में एक उक्ति है "भाग्यम फलती सर्वत्र" अर्थात "यदि हमारा भाग्य साथ दे तो सब कुछ हो सकता है" (कठिन से कठिन कार्य भी), पर यदि हमारा भाग्य कमज़ोर है तो हमारी पूरी महेनत से भी मनचाहे परिणाम प्राप्त नहीं होते |


आइये भाग्य को और आसानी से समझते है, भाग्य याने हमारे पूर्व अर्जित अच्छे कर्म | यदि हमने कुछ अच्छा किया है, तो निश्चित रूप से परिणाम हमारे पक्ष में प्राप्त होंगे, इसके विपरीत हमसे जाने अनजाने कुछ गलत हो गया हो तो हमें भाग्य साथ नहीं देगा अर्थात "हमारे कर्म ही हमारे भाग्य को अच्छा या बुरा बनाते है" |


नवम स्थान से गुरु, पिता, पौत्र (पोता), वंश वृद्धि आदि देखा जाता है आइये समझे इन के तथ्यों को, सर्वप्रथम गुरु तथा पिता यदि हमने पूर्व जन्म में अच्छे कर्म किये है तब तो हमें इस जन्म में उत्तम मार्गदर्शक (गुरु) तथा पिता प्राप्त होते है एवं यह जीवन भी धन्य होता है |


नवम स्थान से वंश वृद्धि (पोता आदि) के सम्बन्ध में विचार किया जाता है क्योंकि यह भाव पंचम का पंचम अर्थात हमारे पुत्र भाव से पंचम है जो की उनकी संतानों को दर्शाता है |


धन्य है हमारे ऋषि मुनि एवं उनका दीर्घ अवलोकन जो हमारे लिए इतना गहरा तथा हर समय हमारे प्रश्नों के समाधान के लिए ज्योतिष तथा वास्तु के ज्ञान की धरोहर हमारे लिए निर्माण कर गए |


मेरे सभी गुरुवरो को मेरा दंडवत प्रणाम जिन्होंने मुझे इस ज्ञान से अवगत कराया तथा समय समय पर मार्गदर्शित करते है |


|| ॐ तत् सत ||

आयु स्थान



ज्योतिष में अष्टम स्थान को "चिरनिद्रा" (मृत्यु) का स्थान अथवा आयु भाव कहा जाता है |


मृत्यु यह अटल सत्य है जीवन का, जिसे अष्टम स्थान से देखा जाता है | अष्टम स्थान मानसिक चिंता, बदनामी आदि को भी दर्शाता है |


किसी भी कार्य को सुचारू रूप से करने के लिए हमारी मानसिक शांति आवश्यक है यदि हमारा दिमाग शांत है तथा विचारो में सतर्कता है तो हमारा हर कार्य ठीक तरह से होगा इसके विपरीत यदि हमारा दिमाग शांत नहीं है तो हम उग्र होकर खुद के पक्ष में उचित निर्णय नहीं ले पाएंगे |


अष्टम स्थान से जीवन साथी की संपत्ति का आकलन भी किया जा सकता है |


आकस्मिक प्राप्त होने वाली संपत्ति की जानकारी भी अष्टम स्थान से प्राप्त हो सकती है |

|| ॐ तत् सत ||

सप्तम भाव



जन्मपत्रिका के सप्तम भाव को हमारे जीवन का अविभाज्य अंग माना जाता है, कारण है इस स्थान की विशेषता आइये जानते है "सप्तम" भाव को,


जीवन में खुशिया ही खुशिया है यदि हमारे साथ दुःख बाटने एवं सुख में समाधान मानने वाला या वाली कोई साथ है तो, जीसे हम जीवन साथी / संगिनी कहते है | सब कुछ होते हुए भी हम अधूरे है यदि जीवन साथी नहीं है तो |


सप्तम भाव की यही विशेषता है इस स्थान के अंतर्गत हमारे जीवनसाथी को देखा जाता है यह स्थान जितना शुभ उतना हमारा जीवन सुखी, समाधानी तथा संपन्न |



शादी से सम्बंधित सभी प्रश्नों का उत्तर सप्तम स्थान से मिल सकता है जैसे,
शादी कब होगी ?
जीवन साथी कैसा होगा ? आदी |


इस स्थान से "व्यवसाय" एवं "व्यवसयियो" के बारे में जाना जाता है जिसे हम कहते "साझेदारी" (Partnership), यदि यह स्थान स्वस्थ है (शुभ दृष्टी / शुभ योग / शुभ ग्रहों से) तो हमें व्यवसाय में साझेदारी करने से लाभ होगा या नहीं यह जानने में सप्तम स्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है |


|| ॐ तत् सत ||

रोग भाव



जन्मपत्रिका का षष्ठ भाव जो "शारीरिक रोग" के सम्बन्ध में देखा जाता है |


षष्ठ भाव से विचारणीय विषय कर्जा, रोग, शत्रु, भय, अपमान इस प्रकार है, जो एक बार पढने पर ऐसा लगता है जैसे पूरी पत्रिका की सारी गलत बाते जो हमारे जीवन में घटित होने वाली है, उसका कारण षष्ठ स्थान है, परन्तु ऐसा नहीं है आइये इसे जरा विस्तार से समझते है |


षष्ठ स्थान से रोग, भय, शत्रु आदि देखने में आते है जो की उसकी विशेषता देखने के बाद सत्य प्रतीत होती है, आज के समय में हमारा शरीर यदि स्वस्थ है तो हम हर जगह मांग (demand) में है लेकिन यदि हमारा शारीर हमारा साथ ना दे रहा हो तो हम किसी कर्म के लिए उपयोगी नहीं, शत्रु के बारे में यदि हम जान जाये तो हमारा अहित नहीं किया जा सकता |


एक और महत्वपूर्ण विषय षष्ठ स्थान से देखा जाता है जिसे "कर्ज" कहते है आज के समय में खुद के जीवन स्तर (Life Style) को व्यवस्थित रखने के लिए हर कोई दौड़ रहा है, जीस के लिए हमें कर्ज की भी आवश्यकता होती है, कर्ज आसानी से प्राप्त होना साथ ही नियत समय पर चूका पाना यह भी षष्ठ स्थान से सम्बंधित विषय है |


इसे ध्यान से पढने पर षष्ठ स्थान किस प्रकार उत्तम है यह आसानी से समझा जा सकेगा |

|| ॐ तत् सत ||

पंचम भाव


जन्मपत्रिका के पंचम भाव से "विस्तार" देखा जाता है |


विस्तार से सम्बन्ध है हमारी बुद्धि का जिसका विस्तार ज्ञान के रूप में होता है इसी कारण से पंचम भाव हमारे ज्ञान को तथा हमारी बुद्धि की विशेषताओ को दर्शाता है जैसे की हमारी शिक्षा (Study) |


विस्तार का और एक सम्बन्ध है जो पंचम स्थान से देखा जाता है जिसकी समस्त जगत को जरुरत है वो है "संतान" एवं संतान तथा कुटुंब वृद्धि संसार की जरुरत भी, कुटुंब स्थान अर्थात द्वितीय स्थान से चतुर्थ होने के कारण यह कुटुंब का सुख है इसीलिए कुल का विस्तार भी इसी स्थान से देखने में आता है इसी कारण से संतान का विचार भी पंचम भाव से किया जाता है |


हमारा इस जगत में आना यह एक कारण है जो हमें पंचम भाव से ज्ञात होता है | चतुर्थ सुख का कारण है तो पंचम उसका धन अर्थात सुख में विस्तार कैसे हो यह भी पंचम भाव से जाना जाता है |


पंचम भाव से "भक्ति" भी ज्ञात होती हैं, यदि हमारे मन में भक्ति है, स्थिरता है, श्रद्धा हैं, लगन हैं तो हम सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं
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|| ॐ तत् सत ||