Wednesday, 30 November 2016

ग्रह तथा शारीरिक बीमारियां




-: ग्रहों का शारीरिक बीमारियों से सम्बन्ध :-

"सूर्य" कमजोर हो तो जातक की जठराग्नि मंद होती है | 

भूख कम लगना अथवा भोजन किया हुआ अन्न पचने में परेशानी यह रोग 'सूर्य' ग्रह के कारण होते है |


"चन्द्र" बलहीन हो तो जातक मानसिक रोग से ग्रसित होता है |
भूल जाना, स्मरण शक्ति कम होना अथवा विस्मरण होना यह रोग 'चन्द्र' ग्रह के कारण होते है |


"मंगल" बलहीन हो तो जातक रक्त विकारो के रोग से ग्रसित होता है | 
रक्त की अशुद्धि अथवा रक्त की कमी आदी रोग 'मंगल' ग्रह के कारण होते है |


"बुध" बलहीन हो तो जातक त्वचा रोग से ग्रसित होता है | 
त्वचा पर दाग होना अथवा त्वचा में खुजली आदी रोग 'बुध' ग्रह के कारण होते है |


"गुरु" बलहीन हो तो जातक की ज्ञानशक्ति में कमी होती है | 
विषय का अधुरा ज्ञान, एकाग्रता की कमी, विद्याप्राप्ती में मन ना लगना, विचारो की अस्थिरता आदी 'गुरु' ग्रह के कारण होते है |


"शुक्र" बलहीन हो तो जातक कांतिहीन होता है | 
चेहरा निस्तेज होना 'शुक्र' ग्रह के कारण होते है |


"शनि" बलहीन हो तो शरीर में स्नायु विकार की संभावना अधिक होती है | 
जोड़ो का दर्द होना (joints pain), रीढ़ की हड्डी में दर्द होना 'शनि' ग्रह के कारण होते है |



|| ॐ तत् सत् ||

Wednesday, 16 November 2016

राशि




ज्योतिष में बहुत से पहलु है किसी भी विषय के अंतिम छोर तक पहुचने के लिए और ऐसे ही कई पहलुओ में से एक है "राशि", पत्रिका में राशि को प्रधानता दे या लग्न को प्रधानता दे या सूर्य (नैसर्गिक आत्मा कारक), चन्द्र (नैसर्गिक मन कारक) को प्रधानता दे, बहुत ही असमंजस (Confusion) से भरा हुआ काम है |
ऐसी स्थिति में आज हम देखते है आखिर राशि (Zodiac Sign) कैसे काम करती है और राशि का स्वभाव हमारे स्वाभाव से कैसे जुड़ता है |
मेष (Aries), कर्क (Cancer), तुला (Libra), मकर (Capricorn) = चर राशि (Movable Sign)

इन राशियों के जातक घुमने फिरने के शौक़ीन तथा एक काम पूरा होते ही दुसरे काम में लगने की मानसिकता वाले होते है, ये लोग कभी किसी काम को बोझ नहीं समझते और हमेशा उत्साह से आगे बढ़ते रहते है तथा दुसरो को भी प्रोत्साहित (Motivate) करते है.

वृषभ (Taurus), सिंह (Leo), वृश्चिक (Scorpio), कुम्भ (Aquarius) = स्थिर राशि (Fixed Sign)

इन राशियों के जातक जो भी काम करे उसीमे पूरी एकाग्रता तथा खुद को झोंक कर काम करते है, किसी एक जगह पर जाने के बाद जब तक उस जगह से जुडी पूरी जानकारी न हो जाये तब तक दूसरी जगह जाने के बारे में विचार तक नहीं करते, इस राशि के जातक विचारो के पक्के तथा हाथ में आये काम को पूरा करने पर फिर उसी काम के बारे में नये सिरे से सोचते है, अपनी कार्यप्रणाली को हमेशा अपडेट करते है.

मिथुन (Gemini), कन्या (Virgo), धनु (Sagittarius), मीन (Pisces) = द्विस्वभाव राशि (Dual Sign)

इन राशियों के जातक किसी भी काम को पूरा करने में हमेशा तकलीफ महसूस करते है और "ये काम मुश्किल है" ऐसा सोचते है, किसी दुसरे को यदि कोई काम करते देख ले तो उसे भी नकारात्मक विचार से भर देते है (ये नहीं हो सकता, बहुत जादा परेशानी है आदि) इन्हें किसी भी विषय के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती, थोड़ी थोड़ी जानकारी सब विषयो की रखते है, इन राशि के जातको को बाते करने में महारत हासिल होती है एक बार शुरू हो जाये तो चर्चा का सत्र चला देते है.
महर्षि पराशर के अनुसार लग्न कुंडली में आने वाली राशि जातक का उपरी नजरिया बताता है तथा अलग अलग वर्गकुण्डलियों में अलग अलग राशियों के अलग अलग परिणाम मिलते हैं.



|| ॐ तत् सत ||

Thursday, 10 November 2016

वास्तु प्रश्न



पूर्वजों की तस्वीर मंदिर में रखे क्या ?
उत्तर:- नहीं.

क्या पूर्वज देवतुल्य नहीं है ?
उत्तर:- "पूर्वज देवतुल्य अवश्य है परन्तु देवता नहीं", क्योकि वे जब पितृ योनी प्राप्त करने के पूर्व (जीवित रहते हुए) प्रभु की नित्य पूजा किया करते थे, "नाकि उनके समक्ष बैठने का भाव मन में लाते थे" |

इसी कारण पूर्वजों की तस्वीर देवमंदिर में नहीं रखनी चाहिए |

|| ॐ तत् सत ||

Tuesday, 8 November 2016

मंत्र



"मंत्र" की मानवीय जीवन में आवश्यकता :-

मंत्र इस शब्द में मुल रूप से दो अक्षर समाविष्ट है |


प्रथम अक्षर है 'म' जिसका सीधा सम्बन्ध हमारे 'मन' से है |
द्वितीय अक्षर है 'त्र' जिसका सम्बन्ध पवित्रता से अर्थात अकारण तनाव को दूर करने से, शुद्धता से है |

परिभाषा :- जो मन को पवित्र कर हमारी बुद्धि को शुद्ध तथा निर्मल करता है उसे मंत्र कहते हैं |

आज के समय में कई प्रकार के दुखो के कारण हम अकारण ही भटकते है, क्योकि हमारा लक्ष्य केन्द्रित नहीं है, लक्ष्य केन्द्रित नहीं है क्योंकि हमारी बुद्धि शुद्ध नहीं है, यदि मंत्र जप के प्रयोग से बुद्धि को शुद्ध कर लीया जाये तो निश्चित रूप से हमारा ध्येय केंद्र बिंदु (हम जो पाना चाहते हैं) बन कर हमारे सामने होगा और हम खुद के लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए प्रयासरत हो जायेगे (जीतोड़ महेनत करेंगे) जिससे हमें लक्ष्य प्राप्ती अवश्य होगी |

इसी कारण हमारे ऋषि मुनियों ने मंत्र साधना का सरल मार्ग हमें विरासत में दिया है |

|| ॐ तत् सत ||

Saturday, 5 November 2016

पचांग - 2



१) अयन क्या है (what is ayan)?
=> अयन का अर्थ,
अयन = पथ पर चलना.
अयन का कार्यकाल ६ मास का होता है.

२) क्या होता है उत्तरायण और दक्षिणायन (What is Uttarayan & Dakshinayan) ?
=> ६ मास तक सूर्य का भ्रमण उत्तर दिशा में होता है उसे उत्तरायण कहते है एवं ६ मास तक सूर्य का भ्रमण दक्षिण दिशा की ओर होता है उसे दक्षिणायन कहते है.

मास क्या है (what is month) ?
=> भारतीय कालविधान शास्त्र के अनुसार, प्रतिपदा से अमावस्या तक होने वाले ३० दिनों के समय को "मास" कहते है. कई भागो में अमान्त (अमावस्या तिथि पूर्ण होने वाला मास) मास माने जाते है, तथा कई भागो में पुर्णिमांत (पूर्णिमा को पूरा होने वाला मास) मास माने जाते है.

मास के नाम (Months Name) =>

१ वर्ष में १२ मास होते है,

१) चैत्र
२) वैशाख
३) ज्येष्ठ
४) आषाढ़
५) श्रावण
६) भाद्रपद
७) आश्विन
८) कार्तिक
९) मार्गशीर्ष
१०) पौष
११) माघ
१२) फाल्गुन

=> शालिवाहन शक की शुरुवात चैत्र मास से होती है तथा विक्रम संवत की शुरुवात कार्तिक मास से होती है.

पक्ष क्या है (What is Paksha) ?
=> एक मास के दो भाग किये जाते है, एक भाग १५ दिनों का तथा दूसरा भाग १५ दिनों का, इन दो भागो के एक भाग को "पक्ष" कहा जाता है.

क्या होता है शुक्ल पक्ष एवम् कृष्ण पक्ष (What is Bright fort Night & Dark fort Night) ?

शुक्ल पक्ष (Bright fort Night) => प्रतिपदा तिथी से लेकर पूर्णिमा तिथी तक होने वाले १५ दिनों को "शुक्ल पक्ष" कहते है.

कृष्ण पक्ष (Dark fort Night) => प्रतिपदा तिथी से लेकर अमावस्या तिथी तक होने वाले १५ दिनों को "कृष्ण पक्ष" कहते है.

|| ॐ तत् सत ||

मुहूर्त

मुहूर्त :-

तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण इन पञ्च अंगो से पंचांग की उत्पत्ति होती है तथा
किसी भी कर्म विशेष के लिए इन पंचांगों की शुद्धि ही "मुहूर्त" कहलाता है |

किसी भी कार्य को शुरू करने से पहले पंचांग शुद्धि देख कर कर्म के अनुसार शुभ मुहूर्त अवश्य देखे | ऐसा करने से हमेशा कार्य वृद्धि होती है तथा कर्म सफल होता है |

|| ॐ तत् सत ||

Thursday, 3 November 2016

जन्म कुंडली



ज्योतिष में जन्मकुंडली का महत्त्व :-

सर्व प्रथम ज्योतिष के बारे में जानने योग्य विषय है जन्मकुंडली।
जन्मकुंडली में कोनसे विषयों का समावेश होता है यह ज्ञात होना अत्यंत आवश्यक बात है, उससे से भी पूर्व यह जानना जरुरी है की जन्मकुंडली याने क्या ? तो आइये जानते है जन्मकुंडली के सूत्रों के बारे में।

१) जन्मकुंडली याने क्या ?
उ. => हमारे जन्म के समय में आकाश पटल पर कोनसे ग्रह कहा विचरण कर रहे है इसका बनाया हुआ नक्षा याने जन्मकुंडली है |

२) जन्मकुंडली बनाने के लिए सामग्री (Details of Native)?
उ. => जन्मकुंडली तयार करने के लिए सर्वप्रथम जातक का जन्म समय (Time of Birth) ज्ञात होना आवश्यक है।
द्वितीय उसका जन्म कहा हुआ (Place of Birth) वह स्थान।
तृतीय जन्म तिथि (Date of Birth)। यह तिन सामग्रियों से ही जन्मकुंडली तयार की जा सकती है।

|| ॐ तत् सत् ||

पचांग




पंचांग क्या है ?

=> सर्व प्रथम पंचांग इस शब्द का संधि विग्रह करते है,
पञ्च + अंग = पंचांग.

पंचांग के पञ्च + अंग => १. तिथि, २. वार, ३. नक्षत्र, ४. योग, ५. करण.

पञ्चांग का प्रथम अंग तिथी,

तिथी क्या है ?
=> हमारे शास्त्र में जन्म कब हुआ यह ज्ञात करने के लिए तिथी(Date) का उपयोग होता है.

तिथीयो के नाम,

शुक्ल पक्ष (Bright fort Night):-
१. प्रतिपदा.
२. द्वितीया.
३. तृतीया.
४. चतुर्थी.
५. पंचमी.
६. षष्ठी.
७. सप्तमी.
८. अष्टमी.
९. नवमी.
१०. दशमी.
११. एकादशी.
१२. द्वादशी.
१३. त्रयोदशी.
१४. चतुर्दशी.
१५. पूर्णिमा (पूर्ण चन्द्र दर्शन).

कृष्ण पक्ष (Dark Fort Night):-
१. प्रतिपदा.
२. द्वितीया.
३. तृतीया.
४. चतुर्थी.
५. पंचमी.
६. षष्ठी.
७. सप्तमी.
८. अष्टमी.
९. नवमी.
१०. दशमी.
११. एकादशी.
१२. द्वादशी.
१३. त्रयोदशी.
१४. चतुर्दशी.
१५. अमावस्या (पूर्ण चन्द्र क्षय).

पंचांग के मुख्य अंगो में एक बड़ा ही महत्वपूर्ण अंग होता है, इस अंग से कोई भी अभिन्न नहीं है, अपितु समस्त जन समाज को हमेशा इसकी जानकारी रहती है, इस अंग का नाम है " वार ".

भारतीय कालविधान शास्त्र के अनुसार सात ग्रहो के नाम पर ही वार के नामो का उद्भव हुआ है,

१. रविवार
२. सोमवार
३. मंगलवार
४. बुधवार
५. गुरूवार
६. शुक्रवार
७. शनिवार

अंग्रेजो ने हम पर १५० वर्ष तक साम्राज्य किया, तब से हम (भारतीय) भी आधी रात को ही वार बदल जाता है ऐसा मानने लगे है, परन्तु वार की सत्य परिभाषा " उदयात उदयं वारः " इस प्रकार है,

अर्थात:- सूर्योदय से द्वितीय दिन के सूर्योदय तक एक ही वार होता है.
उदाहरन:- रविवार के सूर्योदय के बाद सोमवार का सूर्योदय होने पर ही सोमवार माना जाएगा.

|| ॐ तत् सत् ||