|| ॐ ||
देह सुख विचार :-
लग्न स्थान में शुभ ग्रह तो मनुष्य सुन्दर व् आकर्षक होता हैं, इसके विपरीत यदि पाप ग्रह हो तो रूपहीन या अनाकर्षक होता हैं | लग्न स्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टी या योग हो तो शरीर सौख्य होता हैं |
लग्नेश विचार :-
लग्नेश (लग्न राशि का स्वामी ग्रह), नैसर्गिक शुभ ग्रह (बुध, गुरु शुक्र) इनमे से कोई भी केंद्र (लग्न, चतुर्थ, सप्तम, दशम) भाव में या त्रिकोण (पंचम, नवम) भाव में हो तो जातक दीर्घायु, धनवान, बुद्धिमान तथा उच्च पदस्थ (बड़े ओहदे के सरकारी कर्मचारी) का प्रिय होता हैं |
श्रीमान योग :-
लग्नेश यदि चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो तथा शुभ ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र) की लग्नेश पर दृष्टी हो तो जातक यशस्वी (कार्य में यश पानेवाला), श्रीमान (मान सन्मान प्राप्त करने वाला) होता हैं |
|| ॐ तत् सत् ||
ज्योतिष में कई प्रकार (So Many) के साधन (Tools) दिए गए हैं, जैसे की वैदिक ज्योतिष / Vedic Astrology (सम्पूर्ण राशी, नवग्रह, नक्षत्र, पंचांग, मुहूर्त आदि सर्वांग विचार), जैमिनी पद्धति / Jaimini System (राशी दृष्टी का विशेष महत्व), नक्षत्र ज्योतिष / KP System (इसमें जन्मकुंडली में नक्षत्रो की स्थिति के अनुसार और उनके अधिपति के स्थितिअनुसार प्रश्न पर विचार किया जाता हैं), आचार्य वराहमिहिर पद्धति (आकाशवर्णन, ग्रह चार फल (ग्रहों की गति के अनुसार धरती पर मिलने वाले फल), ग्रहण फल, वास्तु विद्या आदि), इन मुख्य शाखाओ के अलावा और भी कई विचारणीय मुद्दे हैं जो ध्यान में रखना आवश्यक हैं.
एक ज्योतिषी (Astrologer) को इन सभी ज्योतिष शाखाओ (Astrology Branches) का ज्ञान (Knowledge) प्राप्त करना आवश्यक हैं, और जब किसी जातक का कोई विशेष प्रश्न (Respective Question) हो तब क्या उपयोग (Use) करना हैं यह तो ज्योतिषी पर एवं स्थिति पर ही आधारित (Depends on situation and/or Astrologer) हैं.
उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर (Doctor) शरीर के किसी भी स्पेसिफिक पार्ट (Specific Part in Body) का बहुत अभ्यास करके उस हिस्से (Part) के स्पेश्यालिस्ट (Specialist) बनते हैं लेकिन इस के पहले डॉक्टर को पुरे शरीर का ही अध्ययन कराया जाता हैं, बाद में उन्हें क्या उपयोग करना हैं ?, कहा करना हैं ?, कब करना हैं ? यह तो उनकी खुद की विज़न (Vision) पर आधारित हैं.
|| ॐ तत् सत ||
विवाह के समय गुण मिलन करते समय सबसे ज्यादा ध्यान देने वाला विषय याने " मंगल दोष अथवा मांगलिक " (भावी वर अथवा वधु की पत्रिका में मंगल की अशुभ स्थिति), कई बार तो इस दोष के कारण विवाह ना करने तक की सलाह दी जाती हैं |
" जब जन्म पत्रिका में लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में मंगल स्थित हो तब जातक मांगलिक या मंगल दोष से युक्त कहलाता हैं, कई विद्वान् व्दितीय स्थान में स्थित मंगल को भी दोषी मानते हैं " |
नव ग्रहों में से विवाह गुण मिलन में चन्द्र, बुध, गुरु तथा शुक्र ग्रह शुभ माने जाते हैं और यह शुभ परिणामो में वृद्धि करते हैं अथवा वैवाहिक जीवन को सुखी बनाते हैं |
मंगल, शनि, राहू, केतु तथा सूर्य ग्रह अशुभ माने जाते हैं और इनमे भी मंगल सबसे ज्यादा उग्र स्वभाव का व सेनापति होने के कारण अधिक अशुभ माना जाता हैं इसी कारण यह दोष भी " मंगल के नाम से ही प्रसिद्ध हैं " |
मांगलिक दोष के अपवाद :-
१. यदि मंगल पर गुरु की दृष्टी हो तो मंगल दोष पूरी तरह से निर्बली हो जाता हैं और यह दोशास्पद नहीं रहता |
२. यदि मंगल अन्य शुभ ग्रह के साथ स्थित हो जैसे चन्द्र, बुध, शुक्र तब ऐसी स्थिति में भी मंगल दोष कम होता हैं |
३. यदि लड़के या लड़की की पत्रिका में उपरोक्त (१,४,७,८,१२) स्थान में मंगल हो और उसी स्थान में वैवाहिक भागीदार की पत्रिका में भी यदि शनि, राहू, केतु तथा सूर्य में से कोई स्थित हो तब भी मंगल दोष समान रूप से प्रभावी होता हैं और दोनों को मांगलिक मानते हुए विवाह के लिए " हामी भरी जा सकती हैं " |
४. मांगलिक दोष में सबसे अच्छा और छोटा उपाय याने " शिव " नाम स्मरण करना |
|| ॐ तत् सत् ||
|| ॐ ||
जन्म पत्रिका में षष्ठेश का लग्न या लग्नेश (लग्न राशी का स्वामी ग्रह) से योग (दृष्टी, युति) हो रहा हो तो ऐसे जातक नकारात्मक विचार करने वाले होते हैं |
उपरोक्त ग्रह स्थिति होने पर जातक का दुसरो से (अधिकतर) वाद विवाद होता हैं तथा मित्र भी शत्रु जैसे जान पड़ते हैं |
-: अपवाद :-
उपरोक्त ग्रह स्थिति में यदि शुभ ग्रहों से युति / दृष्टी योग हो तो नकारात्मकता का प्रभाव कम होता हैं |
|| ॐ तत् सत् ||
लग्नेश (लग्न में स्थित राशी का स्वामी ग्रह) यदि षष्ठ, अष्टम या द्वादश भाव में स्थित हो तो जातक की "रोग प्रतिकारक क्षमता कमजोर होती हैं" और ऐसे जातक बार बार बीमारीयों के शिकार होते हैं एवं छोटी से छोटी बीमारी भी ठीक होने में लम्बा समय लेती हैं | यदि लग्नेश का सम्बन्ध शुभ ग्रहों से स्थापित हो रहा हो तो बुरे परिणामो में कमी आती हैं तथा शारीरिक अस्वस्थता से जातक जल्द ही उबरता हैं |
लग्नेश यदि पाप कर्तरी (लग्नेश की स्थिति से व्दितीय तथा द्वादश भाव में पाप ग्रह स्थित हो तो) में तो जातक शारीरिक रूप से दुर्बल होता हैं |
|| ॐ तत् सत् ||