जन्मकुंडली में द्वितीय भाव एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्योकि कलियुग में इस स्थान की बलवत्ता के बिना किसी भी कर्म को पूर्ण करना असंभव है |
द्वितीय भाव से "धन, अन्न, कुटुंब, वाणी (बोलने की कुशलता)" आदि का विचार किया जाता है |
आज के युग में हमारे पास कितना भी ज्ञान हो पर यदि उस ज्ञान का उपदेश देने की कला न हो अथवा धन का अभाव हो तो हमारे ज्ञान का कोई उपयोग नहीं हो सकता, इसी कारण से जन्मकुंडली का द्वितीय भाव एक विशेष स्थान है जिसकी मदत से आर्थिक स्थिति का विवरण जाना जाता है |
परन्तु द्वितीय स्थान एक मारक स्थान भी है क्योकि "जहा हमारी वाणी लोगो को हमसे जोडती है - उसी वाणी का दुरूपयोग हमारे पतन का कारण भी बन सकता है " जैसे शिशुपाल (महाभारत के पात्र) का अंत उनकी वाणी का दुरुपयोग करने के कारण हुआ |
|| ॐ तत् सत ||