Wednesday, 25 January 2017

वाणि / धन भाव





जन्मकुंडली में द्वितीय भाव एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है क्योकि कलियुग में इस स्थान की बलवत्ता के बिना किसी भी कर्म को पूर्ण करना असंभव है |

द्वितीय भाव से "धन, अन्न, कुटुंब, वाणी (बोलने की कुशलता)" आदि का विचार किया जाता है |

आज के युग में हमारे पास कितना भी ज्ञान हो पर यदि उस ज्ञान का उपदेश देने की कला न हो अथवा धन का अभाव हो तो हमारे ज्ञान का कोई उपयोग नहीं हो सकता, इसी कारण से जन्मकुंडली का द्वितीय भाव एक विशेष स्थान है जिसकी मदत से आर्थिक स्थिति का विवरण जाना जाता है |

परन्तु द्वितीय स्थान एक मारक स्थान भी है क्योकि "जहा हमारी वाणी लोगो को हमसे जोडती है - उसी वाणी का दुरूपयोग हमारे पतन का कारण भी बन सकता है " जैसे शिशुपाल (महाभारत के पात्र) का अंत उनकी वाणी का दुरुपयोग करने के कारण हुआ |

|| ॐ तत् सत ||

Tuesday, 3 January 2017

लग्न स्थान




जन्म समय में आकाश पटल पर पूर्व क्षितिज में उदित होने वाली राशि को (जन्म कुंडली) में लग्न स्थान, प्रथम भाव, देह, तनु आदि नामों से संबोधित किया जाता हैं 

प्रथम स्थान में उदित राशि के अनुसार जातक का शरीर सौष्ठव (शारीरिक रचना), मानसिक विचार प्रणाली, रूप (सुन्दरता), गुण एवं वर्तमान में जातक को किन परिस्थितियों का सामना करना पड सकता है उस पर विचार किया जाता है |

जन्मकुंडली में किसी भी प्रश्न पर विचार करने से पूर्व जातक की स्वविचारधारा क्या है ? इस बात का ज्ञान प्रथम स्थान से होता / किया जाता है |

जिस प्रकार किसी भी पेशंट का इलाज करने से पूर्व उसकी मुख्य बीमारी को जानना जरुरी है, ठीक उसी प्रकार ज्योतिष में यदि प्रथम भाव का विश्लेषण सही तरह से किया जाये तो जातक को भलीभांति समझा जा सकता है तथा उसके मुख्य प्रश्न का विश्लेषण कर उत्तम निष्कर्ष प्रदान किया जा सकता है |


|| ॐ तत् सत ||