Saturday, 16 September 2017

धन व्यय विचार :-




|| ॐ ||

धर्म कार्य हेतु व्यय :-
यदि व्ययेश (द्वादश भाव अधिपती) शुभ ग्रहो के साथ स्थित हो अथवा व्ययेश पर शुभ ग्रहो की दृष्टी हो तो जातक का धन धार्मिक कार्य (औरों की मदत करना, सामाजिक विकास हेतु, दुसरों के हीत) मे खर्च होता हैं |

अधर्म हेतु व्यय :-
यदि व्ययेश (द्वादश भाव अधिपती) पाप ग्रहो के साथ स्थित हो अथवा व्ययेश पर पाप ग्रहो की दृष्टी हो तो जातक का धन अधार्मिक कार्य (औरों को सताना, सामाज के अहीत) मे खर्च होता हैं |

नोट :- धर्म का अर्थ हैं दुसरों को खुश रखना, अधर्म का अर्थ हैं दुसरों को हानि पहुंचाना, तकलिफ देना ।


|| ॐ तत् सत् ||

धन लाभ विचार :-




|| ॐ ||

धनेश (व्दितीय भाव का अधिपति) यदि धन स्थान (व्दितीय भाव) में हो अथवा केंद्र (१, ४, ७, १०) भाव में हो तो जातक को “श्रम से सफलता” (शारीरिक / मानसिक श्रम) मिलती हैं तथा धन लाभ होता हैं |

धन भाव में शुभ ग्रह धनप्रद (धन प्रदान करने वाले) तथा धन भाव में पाप ग्रह धन नाशक (धन हनी करने वाले) होते हैं | यदि धन स्थान पर शुभ ग्रह की दृष्टी या योग हो तब भी जातक को धन लाभ होता रहता हैं |

धनवान योग :-

धनेश यदि लाभ भाव (एकादश भाव) या लाभेश धन स्थान में हो अथवा धनेश तथा लाभेश (एकादश भाव अधिपति) दोनों ही केंद्र अथवा त्रिकोण (१, ४, ५, ७, ९, १०) में स्थित हो तो मनुष्य धनवान होता हैं |

व्यय योग :-

यदि धनेश त्रिक भाव (६, ८, १२) में स्थित हो तो जातक को आवक से ज्यादा खर्च की चिंता सताती हैं |


|| ॐ तत् सत् ||