|| ॐ ||
पुर्वजन्मार्जितं कर्म, शुभं वा यदि वाशुभम |
तस्य पक्ति ग्रहा: सर्वे, सुचयन्तीह जन्मनि ||
जन्म तथा मरण रूपी भव बंधन में (अनेक जन्म में किये गए कर्म) जो किये हुए कर्म हैं, उन सबका शुभ (अच्छा) तथा अशुभ (बुरा) रूप में प्राप्त होने वाला परिणाम सूर्य आदि नव ग्रह द्वारा इस जन्म में मानव जीवन में सूचित किया जाता / मिलता हैं |
All the planets indicate clearly whether we are enjoying or suffering now as a result of our actions in our previous birth.
स्वकर्म भोक्तुं जायन्ते, प्रायेणैव हि जन्तवः |
क्षीणे कर्मणि चान्यत्र, पुनर्गच्छन्ति देहिनः ||
आत्मा खुद के कर्म भोग को पूरा करने के लिए बार बार इस पृथ्वी पर शरीर के माध्यम से जन्म लेती रहती हैं, यह सम्पूर्ण प्रक्रिया (जन्म मरण रूपी चक्र) कर्म भोग की समाप्ति (माेक्ष) तक इसी प्रकार शुरू रहते हैं |
Soul takes fresh births for reaping the fruits of privious lives. This Cycle of births goes on until the attainment of Moksha.
प्राग्जन्मार्जितपुण्याघ, प्राबल्योद्रेकहेतुतः |
प्रारब्धसंज्ञिमानुष्य, जातौजातकचिन्तनम् ||
The balance of good or bad Karma brought forward from previous birth is "Prarabdha Karma" and the reading of this "Karmas / Jatak Varnan" that goes under the name of Astrology.
|| ॐ तत् सत् ||